Rajasthan Water Crisis Effect on Peoples Lifestyle: राजस्थान जैसे रेगिस्तानी राज्य में जल संकट कोई नई बात नहीं है, लेकिन आज भी अगर किसी जिले में महिलाएँ, बच्चे और बूढ़े कई किलोमीटर दूर से पीने योग्य पानी ढोकर लाने को मजबूर हों, तो यह हमारे समाज और सरकार दोनों के लिए शर्मनाक स्थिति है। यह केवल पानी का संकट नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है।
रोज़मर्रा की जिंदगी पर प्रभाव
- महिलाएँ और बच्चे रोज़ाना पानी ढोने में अपना समय और श्रम गंवाते हैं, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका पर बुरा असर पड़ता है।
- दूषित पानी से बीमारियाँ फैलती हैं और गरीब परिवारों की कमाई दवाइयों में खर्च हो जाती है।
- प्यास से जूझते ये हालात आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं।
सरकार की जिम्मेदारी
सरकार का सबसे पहला कर्तव्य है कि वह हर नागरिक तक नजदीक और पर्याप्त शुद्ध पेयजल पहुँचाए। लेकिन यह विडंबना है कि योजनाएँ केवल कागज़ों में रह जाती हैं और आमजन आज भी प्यासा है। दैनिक अखबारों और मीडिया में जब भी ऐसी खबरें सामने आती हैं, तो सरकार को चाहिए कि वह उनकी सत्यता की तुरंत जांच करे और त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करे। इसके विपरीत स्थिति यह भी है कि बरसात के मौसम में जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण कई जिले बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं, वहीं गर्मियों में पानी का अभाव लोगों की ज़िंदगी को संकट में डाल देता है। यह शासन की योजना और प्रबंधन की गंभीर विफलता को दर्शाता है।
सरकार को क्या करना चाहिए
- हर गांव तक पाइपलाइन और शुद्ध जलापूर्ति की गारंटी।
- जल निकासी और नहर प्रबंधन की मजबूत व्यवस्था ताकि बरसात में बाढ़ न आए।
- वाटर हार्वेस्टिंग और वर्षा जल संरक्षण को अनिवार्य करना।
- टैंकर माफिया पर रोक और सस्ती–मुफ़्त सरकारी आपूर्ति।
- शिक्षा व रोजगार से महिलाओं और बच्चों को पानी ढोने के श्रम से मुक्त कराना।
निष्कर्ष
राजस्थान के लोग प्यास और बाढ़ दोनों की मार झेल रहे हैं। गर्मी में पानी की एक–एक बूंद के लिए तरसना और बरसात में पानी क़ी सही निकासी के नहीं होने से घर–गांव डूबना और जनहानि होना सरकार की योजनाओं की असफलता का कड़ा प्रमाण है। अगर सरकार ने अब भी गंभीर कदम नहीं उठाए तो यह संकट केवल आज की पीढ़ी ही नहीं, बल्कि आने वाली नस्लों तक अभिशाप बनकर जाएगा।