Indian Politics: भारत, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, आज एक गहरे संकट से गुजर रहा है। लोकतंत्र की आत्मा है जनता के हित में शासन, न्याय और विकास। लेकिन हकीकत यह है कि राजनीति अब सेवा का माध्यम कम और सत्ता-संपत्ति का साधन अधिक बन चुकी है। यह गिरावट सिर्फ नैतिकता का ह्रास नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नींव हिलाने वाला खतरा है।
भ्रष्टाचार की बेलगाम रफ्तार
आज राजनीति और भ्रष्टाचार का रिश्ता लगभग अविभाज्य लगता है। चुनाव जीतने के लिए बेहिसाब धन खर्च होता है, जिसका स्रोत अक्सर काले धन और सौदों में छिपा होता है। सत्ता में आने के बाद नेताओं का ध्यान जनता की समस्याओं से हटकर उस निवेश की वसूली पर चला जाता है। सरकारी ठेकों से लेकर नीतियों तक, कई निर्णय पारदर्शिता के बजाय लाभ-हानि के समीकरणों पर आधारित होते हैं।
अपराधियों का बढ़ता दबदबा
लोकतंत्र का सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि जो लोग कानून बनाने का अधिकार रखते हैं, उन्हीं में बड़ी संख्या पर हत्या, अपहरण, वसूली और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के मामले दर्ज हैं। चुनाव में पैसे, जाति और दबदबे की राजनीति ने ऐसे चेहरों को सत्ता के गलियारों तक पहुँचा दिया है। नतीजा यह कि जनता का कानून पर भरोसा कम हो रहा है और अपराधियों का हौसला बढ़ रहा है।
प्रशासन में राजनीति की बेड़ियाँ
प्रशासनिक तंत्र, जो जनता के हित में निष्पक्ष काम करने के लिए बना है, वह भी राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार है। पुलिस जांच में देरी, ईमानदार अधिकारियों का मनमाना तबादला, और विकास परियोजनाओं का चुनावी लाभ-हानि के आधार पर रुकना—ये सब आम हो चुका है। न्याय में देरी और अपराधियों को संरक्षण, दोनों ही लोकतंत्र की साख को चोट पहुँचा रहे हैं।
जनता की कीमत पर सत्ता का खेल
इस पूरी प्रक्रिया का सबसे बड़ा शिकार आम नागरिक है। भ्रष्टाचार से विकास की रफ्तार थमती है, अपराध से सुरक्षा का माहौल बिगड़ता है, और न्याय में देरी से पीड़ित का मनोबल टूटता है। लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है, लेकिन राजनीति के अपराधीकरण ने इस सिद्धांत को खोखला बना दिया है।
क्या है समाधान?
- गंभीर आपराधिक मामलों में आरोप तय होते ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगे।
- चुनावी फंडिंग में पूरी पारदर्शिता हो, और खर्च की सीमा का सख्ती से पालन किया जाए।
- पुलिस और न्यायपालिका को राजनीतिक दबाव से मुक्त किया जाए।
- जनता में जागरूकता बढ़े, ताकि वोट खरीदने और डराने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे।
सुझाव :- दी रिपोर्टर न्यूज की ओर से
अगर राजनीति को अपराधियों और भ्रष्टाचार के चंगुल से नहीं निकाला गया, तो लोकतंत्र केवल एक दिखावा बनकर रह जाएगा। यह समय है जब देश की जनता, मीडिया और न्यायपालिका मिलकर राजनीति को उसके असली मकसद—जनसेवा और राष्ट्रनिर्माण—की ओर वापस मोड़ें। लोकतंत्र की ताकत सिर्फ चुनावों में नहीं, बल्कि ईमानदार, पारदर्शी और जवाबदेह शासन में है।
Nice thought, Jai Hind Jai Bharat
Amazing though for special occasions 15 August
Aapka bharat rajniti and bhastachar jo ki har jagah h par ki gyi tipani bahut sahi h
Kya ese hamari janta ,othar mahanubush esse sahmat honge
M aapke es baat se sahmat hu
Aapka lekh bahut accha laga
Thank for this
The artical is eye opening. It is providing a detailed information about flaws in the biggest democracy of world. Highly informative and quality content.
बहुत अच्छा लेख, यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि राजनीति कहाँ जा रही है।”